क़दर…

माँ दिवस मनाते हो, पर माँ को नहीं मनाते कभी,
रोता हुआ छोड़ा ना था उसने, अब सब तोहमते वो सह रही,
घर-आँगन सब तुम पर लुटाया, और वृद्धा आश्रम में सड़ रही,
इंटरनेट पर सारा प्यार दिखे, घर में छोड़ी है अकेली,
माफ़ करना अक़्लो वालों, यह तो कोई क़दर नहीं !!

दर्द असीम सह कर उसने साँसे तेरी ज़िंदगी को दी,
तेल की मालिश करके रमाया तुझे, बुरकियाँ डाली निरि घी की,
सीने का पिलाके अमृत सारा, दुवाओं की उसारे हवेली,
फिर भी तुझे कोई फर्क नहीं,
माफ़ करना अक़्लो वालों, यह तो कोई क़दर नहीं !!

रोटी हिस्से की अपनी, तेरी थाली में रख है देती,
भूखे खुद सोना भी पड़े तो भी नैनों से चमक उतरती नहीं,
कसूर हर तेरा छिपा कर सबसे,नज़र तेरी ऊँची ही रखती,
कदरां जान ही ना पाए, इस फकीरी की,
माफ़ करना अक़्लो वालों, यह तो कोई क़दर नहीं !!

तेरे नन्हे क़दमों को काँटा तक चुभ कहीं ना जाए,
पग पग पे लाडों के साथ गोदी में फिरती उठाये,
भरी दुपहरी में बीच रास्ते के चुन्नी का परछावा बनाये,
फिर क्यों उम्र की थकी राहों में, आज ये कुरला रही,
माफ़ करना अक़्लो वालों, यह तो कोई क़दर नहीं !!

पत्थर बन गया है तू पर फ़िक्र तेरी अब तलाक करती है,
कहीं लग ना जाए कुछ तुझे, तेरी सलामती की आँहे भरती है,
जिया ना एक पल भी अपना और तेरे दम के लिए मरती है,
नम नज़रों से रुखसत हो जायेगी, क्यों पोंछ नहीं सकता इसकी नमी,
माफ़ करना अक़्लो वालों, यह तो कोई क़दर नहीं !!

 

old mommy

माँ तेरे आँचल में….!!

कमाल का सब्र है तुझमे ,
न चुभता है, ना दर्द देता,
कोई भी गम चाहे मिले,
जन्नत क्या सुकून देगी,
जो पनाह तेरी में पले,
लफ्ज़ कहने को सिर्फ एक है,
पर माँ तेरे आँचल में कुल आलम खिले !!

क्या खाया, कैसा है, कहाँ है,
इन्ही चंद सवालात में जान बसे
अपने बच्चे की सलामती खातिर
ना जाने कितने व्रत तू है रखे,
हर बला तेरी नज़र से जाए जले,
पर माँ तेरे आँचल में कुल आलम खिले !!

ज़िंदगी की शुरुवात तुझी से होती,
हर कली को सींचे तेरी आँख का मोती,
लगे चोट अंश को तो, सबसे ज़्यादा तू ही रोती,
हर दर्द गवारा हो जाता जब सीने जा लगे,
पर माँ तेरे आँचल में कुल आलम खिले !!

हर मुस्कान औलाद पे लुटा कर,
हर दुःख को सबसे छुपा कर,
खुशियो की हर वजह बन कर,
नदी की धारा सी बस बहती चले,
पर माँ तेरे आँचल में कुल आलम खिले !!

हर सांस में दुआ ही दुआ भरी रहती है,
पसंद हो औरो को, वही सोचे, वही कहती है,
संग तेरे आराम वाली, खुशबु सदा बहती है,
धूमिल होती नज़रो में भी चमक ही दिखे,
पर माँ तेरे आँचल में कुल आलम खिले !!

लिखता चलु, लिखता ही रहु, लिखा फिर भी ना जाए,
तेरी खूबियाँ, मोहोब्बतें, फ़िक्रे कैसे बयाँ हो पाए,
गाते गाते गुण तेरे कलम की भी आँख भर आये,
गले से लगा ले फिर चरण को, एक यही खुदा मिले,
पर माँ तेरे आँचल में कुल आलम खिले !!

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ज़िंदगी

ज़िंदगी घूमती अपनों परायो में
अफसानों और सायो में
कुछ वक़्त सुकून के पाने को
ज़ाया जाती है धुप-दौड़
और थकी हुयी छायो में

खिलखिलाने के मोके मिलते है
कुछ साथ हंसे तो….
कुछ जलते है
लम्हों की बुनी तस्वीरों पर
ख्वाब अनजाने पलते है
सांस दर सांस जीती
ज़िंदगी अपने हमसायो में
ज़िंदगी घूमती अपनों परायो में

वो मिल गया और खो गया
उधेड़बुन इसी में पल गुज़रते है
खुशियाँ आँखों की बनती चमक
रगों में खून का रंग बन गम चलते है
अकेली रह जाती जब छूट जाये राहो में
ज़िंदगी घूमती अपनों परायो में

रोती है कुरलाती है ,
कभी कभी बड़ा सताती है
नाच कूद के इज़हार करें
जिसमे ये जशन मनाती है
खामोशियाँ हद तक कहती सब चाहो में
ज़िंदगी घूमती अपनों परायो में

कुछ पाकर जो ऐंठा नहीं
सब गवाकर जो रहा बैठा नहीं…..
ज़िंदगी का खूबसूरत तोफ़ा पाया तब
उभरकर तबाही से चल निकला
फिर निराशा निकट आये ही कब
ज़िंदादिली से जीती ज़िंदगी चलती हर रवायतों में
ज़िंदगी घूमती अपनों परायो में
अफसानों और सायो में…… !!

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थका हुआ सा महसूस करता हूँ…!!

थका हुआ सा महसूस करता हूँ
ना जाने क्यों मायूस निकल पड़ता हूँ
मुखोटों में अपने टटोलता हुआ
ठोकर पर हर बार सम्भलता हूँ
थका हुआ सा महसूस करता हूँ…!!

जिन्हें फ़िक्र नहीं मेरे जीने और मरने की
जिन्हें चिंता नहीं मेरे लिए कुछ करने की
फिर उनके इंतज़ार में क्यों यूँ सिहर जलता हूँ
थका हुआ सा महसूस करता हूँ…!!

किन राहों पर हूँ चल रहा कब से
क्या मंज़िल है पूछता हूँ रब्ब से
निरुत्तर ही ऊपर झांकता हाथ मलता हूँ
थका हुआ सा महसूस करता हूँ…!!

जहां गया जब भी गया और सम्मान मिला
दुःखी हुआ जब पीठ पीछे बेईमान मिला
लौ झुलसती से रोज़ थोड़ा थोड़ा पिघलता हूँ
थका हुआ सा महसूस करता हूँ…!!

वो हँसते चेहरे आने पे मुझे अच्छे लगते थे
जूठी हंसी थी उनकी और असल बच्चे मिलते थे
यक़ीनन सुकून से बस नन्हों से गले लगता हूँ
थका हुआ सा महसूस करता हूँ…!!

पलकों तले पलता है एक सपना मेरी नज़रों में
शामिल हो नाम मेरा भी उनकी बातो और खबरों में
अपना कह दें दिल से तो रोज़ कुछ ऐसा ढलता हूँ
थका हुआ सा महसूस करता हूँ…!!

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सफल खादय पदार्थ वितरण कार्यकर्म

नमस्ते दोस्तों,

उम्मीद है आप सब बेहतर होंगे।

इतनी ख़ुशी होती है जब कोई भी बात या जज़्बात आप सबसे साँझा करता हूँ। आपको मैंने बताया था की हमारी टीम मिल कर “खादय पदार्थ वितरण कार्यकर्म” करने जा रही है। बहुत ख़ुशी से बतना चाहूंगा की यह कार्यकम ईश्वर क़ि अपार कृपा और टीम के साथ से सफलतापूर्वक पूरा किया गया।

इस कार्यक्रम में टीम ने मिल कर इन लोगों तक मदद पहुंचायी

1. गरीब काम करती महिलाएं
2. छोटी उम्र के काम करते बच्चे
3. बुजुर्ग अवस्था में रिक्शा या कचरा रेहड़ी चलाते लोग
4. बुज़ुर्ग मज़दूर
5. भरी धुप में काम करते गरीब

इस कार्यकर्म में हमारी टीम ने तेज़ धुप में घूम घूम कर ज़रूरतमंदों को ढूंढ कर उन तक यथासम्भव मदद पहुंचाई। प्यारे भाई-बहनों के चेहरों पर आती मुस्कान इस टीम की गर्मी को दूर कर देती थी। दुआओं के साथ साथ धन्यवाद मिलते थे।

टीम सामान के 5 किलो के पैकेट्स बना कर, जिसमे २ किलो आटा 1 किलो चावल 1 किलो दाल और 1 पैकेट नमक था, तो इनके पैकेट्स बना कर गाड़ियों के सहयोग से सुबह 9 बजे सुशांत लोक पहुंचे जहां अति गरीब परिवारों को सामान वितरित करना शुरू किया गया।

बच्चे सबसे अनमोल धरोहर है हमारे समाज की तो टीम ने परिवारों के बच्चों के हाथों में देकर यह मानवता कार्य शुरू किया और उनकी सुन्दर मुस्कान पाने के लिए नन्हे बच्चों को चॉक्लेट दी गई।

इस उपरांत गाड़ियों का कारवां वहां से अपनी डगर पर चल निकला जिसमे तय था जो भी अति गरीब ज़रूरतमंद इंसान भरी गर्मी में’खुले आसमान के तले मेहनत करता मिला उस तक यह मदद पहुंचाई जाये।

इस तरह ओर कई तरह के ज़रूरतमंद मिले जिन तक जब यह मदद पहुंचाई गई तो उनके चेहरों पर मुस्कान थी जो सच्ची थी ना की कोई किराए की थी। कुछ हैरान थे की कहाँ से ईश्वर ने मदद भेजी जो उन तक भोजन पहुंचा।

अच्छी बात एक यह भी रही की आटा और चावल उस ज़रूरतमंद दुकानदार से लिया गया जिसके बेटे की मौत कुछ ही दिन पहले हुयी है और इस दुःख की घडी में कुछ सहायता उसे भी मिल गई और ज़रूरतमंद से खरीद कर ज़रूरतमंदों तक पहुँचाया गया।

टीम के मेंबर्स ने खुद के काम छोड़ कर समय निकाल कर सामान ख़रीदा उनके पैकेट्स बनाए जो को सराहनीय है।

टीम के दो मेंबर्स जिन्होंने नाम बताने को मना किया उन्होंने बिना किसी मांग के और स्वार्थ के अपना योगदान देते हुए दो दिन पूरा दिन अपनी गाड़ियां सेवा में दी और खुद भी उपस्थित रहे। मानव ग्रुप (social group) की तरफ से पेट्रोल के पैसे दिए जाने पर मना करते हुए शुक्रिया अदा किया की उन्हें सेवा में शामिल होने का मौका मिला। ऐसी भावना को सारे ग्रुप की तरफ से सलाम।

इस सब आशीर्वाद ओर दुआओं के हकदार सभी हैं जिनके अति पावन साथ से ईश्वर के इस काम को कारगर किया गया।

मानवता तभी ज़िंदा रह सकती है जब हम सब मानव होना सार्थक करके दिखलाए।

लाल जोड़े में सजी बहना..!!

क्या अजीब है यह वक़्त, जिसमे जा रही वो घर अपने
दिल खुश बहुत हुए जा रहा, पुरे हुए जो देखे सपने
लाल जोड़े में सजी बेहना, संजोग सुन्दर बांधे रब्ब ने
पलकों पर सवारी करती, अब हो चली डोली पे सवार
आंसू ख़ुशी के आँखों से, संग दुवाएं लाखों दी है सब ने
लाल जोड़े में सजी बहना, संजोग सुन्दर बांधे रब्ब ने !!

आनंद की डोर से पिरोया हर पल, नन्हे कदमो से तू चल
आती मेरी ओर प्यारी सी मूरत …..
रोकते अश्क़ भी बह निकले, और वक़्त हाथ से जाए फिसले
चाँद से भी सुन्दर लगे बहन तेरी सूरत…..
तुझे हँसता देख जो ख़ुशी मिले, निराली सारे जग से
लाल जोड़े में सजी बहना, संजोग सुन्दर बांधे रब्ब ने !!

हर घड़ी लम्हा अब याद आ रहा , तेरा रूठ-मनाना सब सता रहा
मनमोह अठखेलियां और भाव निराले भी….
एक बहता आंसू तेरी आँख का, धधका जाता था दिल आग सा
तेरे जाने पे आँगन शक्ल अखत्यारे वीराने सी….
दुआ दम दम पर, चमके तू बढ़कर हर एक नग से
लाल जोड़े में सजी बहना , संजोग सुन्दर बांधे रब्ब ने !!

नन्हीं सी छाँव मेरे घर की, हर गम को मिटाती थी तेरी हसी
और देख तुझे थकान भी हट जाती….
रोब इतना हक़ से जताती, जैसे घर की यही बड़ी
नाराज़ होने पे हाथों से रोटी खिलाती…..
मुस्कराहट कभी ओझल हो ना तेरे लब से
लाल जोड़े में सजी बहना , संजोग सुन्दर बांधे रब्ब ने !!

कैसे भूल जाऊं समय वो वाला, गलती पर कसूर खुद पे लेती सारा
कमियां तक छुपा लेती थी
देर रात आने से आँख दिखाना, डांट लगानी फिर कह कर आवारा
दबे पाँव से खाना दे जाती थी
चाहे कितना नखरे करता, खुश फिर होता रग रग से
लाल जोड़े में सजी बहना , संजोग सुन्दर बांधे रब्ब ने !!

छोटी सी परी हमारे दिल की, देखो आज कितनी बड़ी हो गई
सज-धज कर ससुराल चली…..
हज़ारो ख़्वाब संजो कर नज़रो में और बैठ पलकों की गली
बसाने अपना संसार चली….
चारों तरफ़ फूल बरसते साथ ख़ुशी के नाद बज रहे
लाल जोड़े में सजी बहना , संजोग सुन्दर बांधे रब्ब ने !!

आनंद सुख शांति समृद्धि से भरा तेरा आने वाला हर पल हो
सूरज सी चमक चाँद सी शीतलता परिपूर्ण….
कल कल करता पावन करती रहो तुम जैसे गंगा का जल हो
समाया तुझमे सब ही गुण…..
पराई कभी नहीं होगी, यहाँ-वहाँ आँगन तेरे ही अब से
लाल जोड़े में सजी बहना , संजोग सुन्दर बांधे रब्ब ने !!

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मूल अधिकार- शिक्षा संस्कार

नमस्ते दोस्तों,

सबसे पहले आप सब मुझे माफ़ करें की इतने दिन तक मैं कुछ नहीं लिख सका। इसका एक बेहद खूबसूरत कारण है की जिस प्रकार पिछली बार मैंने मेरे दोस्त के साथ मिल कर जो मानवता को समर्पित कार्य करने का प्रयास करते हुए कुछ गरीब ज़रूरतमंद बच्चों को पढ़ाई का सामान बांटा था तो यही कार्य दुबारा करने का प्रयास करने जा रहा हु जिसमे पहले से ज़्यादा बहुत से नए लोग जुड़ गए है और इस सेवा कार्य में साथ दे रहे है। इन्ही कारणों से मैं यहाँ कुछ लिख ही नहीं पाया।

ऐसे बहुत से बच्चे है जो सरकारी स्कूल में पढ़ते है और उन्हें सरकार की तरफ़ से किताबें और कापियां मोहयिया करवाई जाती है पर सरकार के खजाने से लेकर बच्चों के हाथो तक बीच में इतने अनपढ़ ऑफिसर या सरकारी मुलाज़िम मौजूद है की उन कापियों की आने वाली राशि वो अपने जेबों में बाँट कर रख लेते है और मासूम बच्चों तक पहुँचती है सिर्फ एक कॉपी। उसी एक कॉपी में उन्हें स्कूल का काम करना होता है और घर के लिए दिया गया काम भी, बल्कि कभी कभी उन मासूम बच्चों के दिल में कुछ चित्र उकेरने का ख्याल उमड़ आये तो भी वही एक कॉपी उनकी चित्रकारी की किताब बन जाती है। इस सब से उनकी वो एक कॉपी पन्दरह से बीस दिनों में भर जाती है और फिर वो बच्चे स्कूल आने से बहाने बनाने लगते है।

कुछ बच्चे फिर घर से तो निकलते है पर सड़कों पर खाक छानते, मिट्टी से खेलते या गलत संगत की तरफ निकल पड़ते है। उनसे पूछा जाता है तो बताते है की वो स्कूल जा कर करेंगे क्या जब कुछ लिखने को है ही नहीं। उनके माँ-बाप खाने की रोटी जुटा लें वही काफी होता है तो कहाँ से कापियां किताबें और अन्य ज़रूरत का पढ़ाई का सामान ला पाएंगे।

मासूम नन्हे चेहरों पर कितनी अनमोल ख़ुशी थी जब उनके हाथों में नयी कापियां और पेंसिल्स वगेरा पहुंची। शायद उस खूबसूरत हसी का हमे मोल भी नहीं पता पर असल में वो बिकाउ मुस्कान नहीं थी। अगर ईश्वर ने हमें इस लायक बनाया है की हम किसी की मुस्कान का, चंद पल खुशियों का कारण बन सकते है तो क्यों ना हाथ मिलाकर एक जुट होकर अपने इन नन्हे भाई-बहनों के लिए कुछ कर दें।

माना हम दुनियाँ नहीं बदल सकते पर किसी की दुनियाँ तो बदल ही सकते है ना….. !!

पिछली दफ़ा हमने 35 बच्चों तक पढ़ाई की सामग्री पहुंचाई थी। इस बार लोगों के जुड़ने से हमारा होंसला दोगुना हो गया है और हम ईश्वर के आशीर्वाद से 120 बच्चों के लिए पढ़ाई का सामान बना पा रहे हैं।

दोस्तों का साथ और बहुतों का होंसला इतना कारगर साबित हो रहा है की छोटी सी किरण अब मशाल बन जाने की राह पर चलती नज़र आती है। ईश्वर ने हिम्मत दी तो यह मशाल आगे बहुतों की ज़िंदगी में रौशनी करने का कारण साबित होगी, ऐसा मेरा यकीन है।

सबके साथ होने से और सबकी दिल की भावना को भांपते हुए एक ग्रुप भी मैंने वाट्सअप पर बनाया जिसका नाम रखा, “मानव- इंसानियत ही धर्म है”

मुझे अभी कुछ और दिन लगेंगे इस दूसरी बार करने जा रहे मानवता को समर्पित कार्य में, मैं और मेरे साथी मिल कर उन बच्चों के लिए कल सामान लेने जा रहे है तथा उसके अगले सूरज की लालिमा के नीचे बच्चों को सामान वितरित किया जायेगा।

समय मिलने पर आपको मेरा वो अनुभव भी ज़रूर बताना चाहूंगा। बहुत ख़ुशी के साथ मुझे गर्व भी है की मेरे साथ इतने लोग और जुड़ गए है जो मुझे होंसला देते है और अपनी तरफ़ से भी अपनी हक़-हलाल की कमाई में से हिस्सा डाल रहे है।

मेरा हाथ जोड़ कर सबके जज़्बे को और साथ देने की भावना को दिल से नतमस्तक होकर सलाम है।

अगर आप में से कोई साथ आना चाहे या हिस्सा बनना चाहे तो आप अपनी कमाई में से न्यूनतम 1 रूपये से लेकर जितना आपको ठीक लगे आप साथ दे सकते है।

सभी का बहुत बहुत धन्यवाद और सलाम।

अनमोल मुस्कान सितारों की

सौभाग्य था या खूबसूरत पल
न मैं जानता था ना ही मेरा दिल
उनका मासूम स्पर्श पाकर पाक सा
गद्द गद्द मन और चेहरा गया था खिल
कुछ तोहफे क्या उन्हें दिए
अनमोल मुस्कान सितारों की गई थी मिल !!

एक स्कूल में जाना हुआ था
नन्हे बच्चों से सजा मंदिर वो था
कुछ का भूरा तो रंग किसी का गेहुंआ था
शांत बैठे तो कोई मस्त-कलंदर था
जाते ऐसा लगा जैसे
चमकते सितारों का झुण्ड है झिलमिल
कुछ तोहफे क्या उन्हें दिए
अनमोल मुस्कान सितारों की गई थी मिल !!

देख हमे वो बच्चे मुस्कुरा रहे थे
कुछ झांकते तो कुछ शरमा रहे थे
मुख्य अध्यापिका के प्रवेश होते ही
नन्हे फूल अनुशासित हो दिखा रहे थे
उनके लिए नई कापियां आज आई है
यह बात उन्हें मास्टर जी समझा रहे थे
बस सुनते ही बच्चों की आँखे सुन्दर
हमारे पास रखे थैलों की तरफ गई निकल
कुछ तोहफे क्या उन्हें दिए
अनमोल मुस्कान सितारों की गई थी मिल !!

देख उन्हें मैं भावुक होता जा रहा था
मेरा सारा मन उन्ही में समा रहा था
किसी की फ़टी शर्ट थी तो कोई लटकती पेंट में था
रोना तब आ गया जब देखा पैरो में फसी टूटी चप्पल
कुछ तोहफे क्या उन्हें दिए
अनमोल मुस्कान सितारों की गई थी मिल !!

आँखों को समझा कर ध्यान उन फूलों पर दिया
जो कुछ भी ले गए थे उसे मेज़ पे सजा था लिया
नन्हे नन्हे कदमो से वो पास आते जो गए
ख़ुशी से उछलने लगा मेरा जिया
चंद लकीरो वाले हाथो से थामने लगे थे
कापियां, रंग शार्पनर रबर और पेंसिल
कुछ तोहफे क्या उन्हें दिए
अनमोल मुस्कान सितारों की गई थी मिल !!

लेते ही तोहफे वो खुश हो गए
कई बार शुक्रिया करने लगे
उन्हें लगा जैसे हम कुछ देने है आये
अनमोल पल यादगार दिन बनाया है
नहीं समझते ना ही वो थे जानते
खिलखिलाहट मासूम शक्लो की में हम भी गए घुलमिल
कुछ तोहफे क्या उन्हें दिए
अनमोल मुस्कान सितारों की गई थी मिल !!

क्या इतनी औकात मेरी है,जो कुछ भी उनको दे औउ
बस दिल की तमंना होती थी ,की एक एक को गले से लगाऊ
उनके चेहरों को ही पुचकारकर ,रहा अपने मन को समझाऊ
एक दुआ रूह से आती है ,वो जीते रहे वो जागते रहे
कामयाबियों को पाते रहे
और गरीबी उनमे से जाए निकल
कुछ तोहफे क्या उन्हें दिए
अनमोल मुस्कान सितारों की गई थी मिल !!

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Bachpan wala Zamaana

Smaa kitna suhana tha, mausam har ek diwana tha
naa zaat maante na hi dharam, na gair koi kbhi pehchana tha
ladte-bhidte aur rote-manaate, mil baant ke mithayi  khaana tha
kyu wapis nahi aata wo, jo bachapan wala zamaana tha..!!

Na hoti chinta ghar ki thi, aur baat baat pe hasi khilti thi
kahi pe jaa maang lete, jaha bhi roti milti thi
koi lafz tariff ke kr jo deta to muh chupa sharmanaa tha
kyu wapis nahi aata wo, jo bachapan wala zamaana tha..!!

Nirmal mann mein khyal ajeeb, na hum ameer na koi gareeb
manaate mitha ho jaate, chahe daant pe behte khaare neer
chiz koi na milne par, muh bnake rosh dikhlana tha
kyu wapis nahi aata wo, jo bachapan wala zamaana tha..!!

unch-neech ka papda, yaa hota lukan-chupayi ka khel
ek awaaz aati almast yaar ki, le balla nikal chlta mel
aur jhgda krke ghr ko anaa, fir saara haal ro sunanaa tha
kyu wapis nahi aata wo, jo bachapan wala zamaana tha..!!

Kya din niklta jugaad bnaate, kaise kakshaa ko nahi hai jaana
jab pet dard ka jutha naatak, aur bahaane bahaane ansu banana
khud hi hasi aane par, jhatt chaddar mein muh chupana tha
kyu wapis nahi aata wo, jo bachapan wala zamaana tha..!!

Mandir jaate mazaar se ho aate, gurdwara bhi humko pyara tha
bhedbhav hota kya yeh bhed pta nahi, koi dwaar kbhi na nakaara tha
bhag bhag sbse aage baithna aur, pehle parshaad khaana tha
kyu wapis nahi aata wo, jo bachapan wala zamaana tha..!!

Sab badal gya sab bikhar gya, hum ban baithe bs ab chor hai
na mann hai saaf, na zubaan mein mithas, bilkul hi kamzor hai
vigyaan ke bhogo mein fas kar, dur se salaam thukwana ho gya
Kaash wapis hi aa jata wo, jo bachapan wala zamaana tha..!!

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