माँ दिवस मनाते हो, पर माँ को नहीं मनाते कभी,
रोता हुआ छोड़ा ना था उसने, अब सब तोहमते वो सह रही,
घर-आँगन सब तुम पर लुटाया, और वृद्धा आश्रम में सड़ रही,
इंटरनेट पर सारा प्यार दिखे, घर में छोड़ी है अकेली,
माफ़ करना अक़्लो वालों, यह तो कोई क़दर नहीं !!
दर्द असीम सह कर उसने साँसे तेरी ज़िंदगी को दी,
तेल की मालिश करके रमाया तुझे, बुरकियाँ डाली निरि घी की,
सीने का पिलाके अमृत सारा, दुवाओं की उसारे हवेली,
फिर भी तुझे कोई फर्क नहीं,
माफ़ करना अक़्लो वालों, यह तो कोई क़दर नहीं !!
रोटी हिस्से की अपनी, तेरी थाली में रख है देती,
भूखे खुद सोना भी पड़े तो भी नैनों से चमक उतरती नहीं,
कसूर हर तेरा छिपा कर सबसे,नज़र तेरी ऊँची ही रखती,
कदरां जान ही ना पाए, इस फकीरी की,
माफ़ करना अक़्लो वालों, यह तो कोई क़दर नहीं !!
तेरे नन्हे क़दमों को काँटा तक चुभ कहीं ना जाए,
पग पग पे लाडों के साथ गोदी में फिरती उठाये,
भरी दुपहरी में बीच रास्ते के चुन्नी का परछावा बनाये,
फिर क्यों उम्र की थकी राहों में, आज ये कुरला रही,
माफ़ करना अक़्लो वालों, यह तो कोई क़दर नहीं !!
पत्थर बन गया है तू पर फ़िक्र तेरी अब तलाक करती है,
कहीं लग ना जाए कुछ तुझे, तेरी सलामती की आँहे भरती है,
जिया ना एक पल भी अपना और तेरे दम के लिए मरती है,
नम नज़रों से रुखसत हो जायेगी, क्यों पोंछ नहीं सकता इसकी नमी,
माफ़ करना अक़्लो वालों, यह तो कोई क़दर नहीं !!