ज़िंदगी घूमती अपनों परायो में
अफसानों और सायो में
कुछ वक़्त सुकून के पाने को
ज़ाया जाती है धुप-दौड़
और थकी हुयी छायो में
खिलखिलाने के मोके मिलते है
कुछ साथ हंसे तो….
कुछ जलते है
लम्हों की बुनी तस्वीरों पर
ख्वाब अनजाने पलते है
सांस दर सांस जीती
ज़िंदगी अपने हमसायो में
ज़िंदगी घूमती अपनों परायो में
वो मिल गया और खो गया
उधेड़बुन इसी में पल गुज़रते है
खुशियाँ आँखों की बनती चमक
रगों में खून का रंग बन गम चलते है
अकेली रह जाती जब छूट जाये राहो में
ज़िंदगी घूमती अपनों परायो में
रोती है कुरलाती है ,
कभी कभी बड़ा सताती है
नाच कूद के इज़हार करें
जिसमे ये जशन मनाती है
खामोशियाँ हद तक कहती सब चाहो में
ज़िंदगी घूमती अपनों परायो में
कुछ पाकर जो ऐंठा नहीं
सब गवाकर जो रहा बैठा नहीं…..
ज़िंदगी का खूबसूरत तोफ़ा पाया तब
उभरकर तबाही से चल निकला
फिर निराशा निकट आये ही कब
ज़िंदादिली से जीती ज़िंदगी चलती हर रवायतों में
ज़िंदगी घूमती अपनों परायो में
अफसानों और सायो में…… !!