सरताज-ए-शहादत

पंचम पातशाह (सिख गुरु )साहिब श्री गुरु अर्जन देव जी की महान शहादत (आज के दिन) को समर्पित उनके चरणों में एक कविता

सदियाँ बीत चुकी हैं, कभी दे ना पाए तेरा देन पीरा
राम दास सतगुरु के घर आया हिन्द का रूहानी हीरा
सरताज-ए-शहादत पंचम पातशाह अर्जन देव फकीरा
ज़बर-ज़ुलम के दौर में सुच्चा उच्चा था तेरा जमीरा !!

अपने स्वासों को कर कुर्बान मानवता को नवाज़ा है
तेरे जलते बलते बदन की पाक खुशबु आज तक ताज़ा है
उसी दिन से बलिदानी तुमने सहारी हम सबकी पीड़ा
सरताज-ए-शहादत पंचम पातशाह अर्जन देव फकीरा !!

सुख के अधिकारी राजन के राजा कृपालु गुरु तुम
सर्व-साँझा दरबार सजा,ज्ञान सरोवर में नहलाये हम
आदि ग्रन्थ साहिब सम्पूर्ण सूरज दिया प्यारे शहीरा
सरताज-ए-शहादत पंचम पातशाह अर्जन देव फकीरा !!

रहे हर शह पे हुकूमत राम की साथ शांति बनी रहे
सुखमनी इंजील पावन उतार रब्ब से नशवानो को नवाजे
क्या क्या गुण किस मुख से कह सकूंगा तेरे शहंशाह नसीरा
सरताज-ए-शहादत पंचम पातशाह अर्जन देव फकीरा !!

कोई दान करता माया है तो कोई ज़ायदाद भी देता
ज़ुलम तोड़न मिसाल बन बलिदान आप ही कर डाला
परवाह भय ना खाया ज़ालिम बादशाह जहांगीरा
सरताज-ए-शहादत पंचम पातशाह अर्जन देव फकीरा !!

आदम का ज़ाया हुकूमत के नशे में खुदा समझे होकर चूर
जिस खुदा को सर झुकावे, मचले मनचला कैद करने को वही नूर
बाणी पीर की तोड़ जो रही उसकी जुठ की कुफर जंजीरा
सरताज-ए-शहादत पंचम पातशाह अर्जन देव फकीरा !!

दे कर डर मौत का बाते बनाए पंचम नानक जोत को
क्या जाने गुरु रब्बी चेहरे वाले ने कब का जीता मोत को
देता है रौब बादशाहत की पकड़ चमचमाती श्मशीरा
सरताज-ए-शहादत पंचम पातशाह अर्जन देव फकीरा !!

छोड़ दीन मज़हब अपना, बन जाओ तुम मोमडम गुरु
मानव धर्म टिकाने को आये, समझाते है मानवता से सब कुछ शुरू
मिटा दिए पातशाह ने आप जो ज़ालिमों ने खींची है लकीरां
सरताज-ए-शहादत पंचम पातशाह अर्जन देव फकीरा !!

ना झुके ना रुके,रास्ता सच का अपनाए रखा है
देख अड़ीग मुकाम आपका झुकता तुझे माथा है
शहीद हो खुद मुर्शीद सौंप गए अनमोल जागीरा
सरताज-ए-शहादत पंचम पातशाह अर्जन देव फकीरा !!

घूम गया चकरा गया देख होंसला साहिब सच्चे का
ना मना पाया ना डरा पाया,तड़फ गया नासमझ बच्चे सा
और दे दिया फ़तवा शहीद करने को, बिना किया रूह संग तकरीरा
सरताज-ए-शहादत पंचम पातशाह अर्जन देव फकीरा !!

दिन यही कुछ तब भी थे, लू चले और गर्म थी धरती
तेज़ अंगारी रौशनी सूरज की में चमड़ी जाए थी जलती
ठुकरा देने पे हुकुम, सजा थी जला देना गुरु सरीरा
सरताज-ए-शहादत पंचम पातशाह अर्जन देव फकीरा !!

कर कैद खुदाया रूप, बादशाह ले लाहोर को था आया
गर्म करवा के तवी लोह की, जल्लाद ने मुर्शिद उसपे बिठलाया
हाय कर उठा आसमां तब और आँखे सबकी नीरो-नीरा
सरताज-ए-शहादत पंचम पातशाह अर्जन देव फकीरा !!

तेरा भाणा मीठा लागे, तवी जलती पे ठंडक वो बरसाते
जो मालिक को यही पसंद, इसी में पंचम अमल दिखाते
लाल आग सी लोह के ऊपर देह हुयी जाती लीरो-लीरा
सरताज-ए-शहादत पंचम पातशाह अर्जन देव फकीरा !!

सब्र शैतानियत को अभी भी कहाँ था, चाहे तप पावन शरीर गया
सुनाया फ़रमान नामुराद ने तो रेत गर्म सर के ऊपर डलने लगा
मियां साईं सूफ़ी अर्ज़ गुज़ारे, गुरु तुझ बिन कौन बँधाये धीरा
सरताज-ए-शहादत पंचम पातशाह अर्जन देव फकीरा !!

पूछा तवी को तू रोई नहीं क्या, जो गुरु तुझपे विराजे थे
कैसे गर्म तू हो गई, क्यों देखा ना नानक आप ही साजे थे
लोह कहे खुद ठंडा पड़ जैसे मिला सपर्श सुच्चा अमीरा
सरताज-ए-शहादत पंचम पातशाह अर्जन देव फकीरा !!

तन झुलस गया, पिघल गया जैसे कोई मोम की बाती
ज्ञान बाँटने आये थे वो, साहिब धर्म की पताका फेहरादी
जल कर आप पुंज शांति ने, मानवता का नाम बड़ा जहीरा
सरताज-ए-शहादत पंचम पातशाह अर्जन देव फकीरा !!

सुनलो मनु की अंश सारे, ऐसा बलिदान कर हमें बचाया
प्रेम की ठंडक बरसाई गुरु, जलती लोह पे विराज हो समझाया
नतमस्तक हो नमश्कार हज़ारो, राजन के राजा पीरों के पीरा
सरताज-ए-शहादत पंचम पातशाह अर्जन देव फकीरा !!

 

“खादय पदार्थ वितरण कार्यकर्म “

कुछ दिनों से मैं थोड़ा कम लिख पाता हूँ, पर जब भी लिखता हूँ और आप सबके साथ यहाँ साँझा करता हूँ तब बहुत अच्छा महसूस करता हूँ। ईश्वर की असीम अनुकम्पा के साथ और दोस्तों के पावन सहयोग से मानवता को समर्पित कुछ कार्यकर्म चलाने की हिम्मत हुयी है और कारगर रूप से हुए भी है।

सबसे पहले हमने 35 अति गरीब घरों से सरकारी स्कूल में पढ़ने आये बच्चों के लिए किताबों तथा अन्य पढ़ाई के सामान की व्यवस्था की थी। दूसरी दफ़ा लोगों के साथ बढ़ने से बच्चों की संख्या बढ़ कर 110 हो गई थी और ईश्वर के आशीर्वाद से सभी 110 बच्चों के लिए पढ़ाई की भरपूर सामग्री की व्यवस्था की गई थी और सफल रूप से बांटा गया था।

बात यह है की मैं या मेरे साथी कोई बड़ा काम नहीं कर रहे बल्कि उनका अधिकार उन तक पहुंचा रहे है, हम तो बस निमित मात्र है।

जितना सुकून ज़रूरतमंदों के चेहरे पर असल मुस्कान आने पे मिलता है वो चैन ओर आराम तथा शांति मन को और कही भी नहीं मिलती। पैसे खर्च करके चाहे किसी होटल में जाके स्वादिष्ट खा आओ या किराए का नाच गाना कर आओ तो इसमें मिलने वाली मुस्कान कुछ पल की किराए की मुस्कान होती है और इन् ज़रूरतमंदों के मासूम चेहरों पे’दिखने वाला आराम जो शांति मन को दे जाए उसका जवाब कही ओर नहीं मिलता

कहने को मानव है पर मानवता को ज़िंदा रखने के लिए हम कितना सहयोग देते है, यह सोचने वाली बात है।

मानवता को फूल चढ़ाते हुए इस बार फिर सबके सहयोग से हमने तय किया की बाजार में भरी धुप में जो बूढ़े आदमी रिक्शा खिंच कर दो वक़्त की रोटी जुटाने को मज़बूर है उनके लिए सब कुछ तो नहीं पर ईश्वर के आशीर्वाद से कुछ मदद की जाए और इसी ख्याल को पुख्ता करते हुए उन रिक्शावालों को नीचे लिखे अनुसार मदद पहुँचाने का पक्का हुआ है

कार्यक्रम नीचे बताए अनुसार है :

“खादय पदार्थ वितरण कार्यकर्म ”

1 . गरीब बुजुरग रिक्शा चालकों को सामान बाँटना
2 . 5 किलो के पैकेट्स बनाना और देना
3 . पैकेट्स में होगा 2 किलो आटा, 1 किलो चावल, 1 किलो दाल तथा 1 पैकेट नमक
4 . 27 मई 2016 को सुबह 9 से 11 बजे के बीच बांटा जाना है
5 . 70 से 100 लोगों तक बाँटने की निति बनाई गई
6 . स्थान बस स्टैंड गुडगाँव से शुरुआत
7. सहयोग सराहनीय रहेगा

चाहे थोड़ी कम मात्रा में शायद हम सहयोग कर पाएंगे पर ईश्वर की कृपा से उम्मीद से भरपूर मैं कामना रखता हूँ की इस मशाल की लो से रौशनी बढ़ जाएगी और काफी अच्छे प्लेटफार्म पर हम ज़रूर आगे चल कर कर पाएंगे।

खुशियाँ पाने का तरीका यह बेहतरीन है और यह आनंद अंदर का सदा रहने वाला है। मैंने ईश्वर को इनकी मुस्कान में खोजने का यत्न किया है और मुझे लगता है की इनके दिलो में बसे परमात्मा को भी ख़ुशी मिलती होगी जब यह हमारी दुनियाँ के मिट्टी में दबे हीरे मुस्कुराते होंगे।

अगर आप भी मेरे साथ सहयोग करने की इच्छा रखते हो तो कम से कम 1 रूपये के योगदान से लेकर जितना आपकी जेब आज्ञा दे, उतने तक सहयोग दे सकते है।

आप अगर चाहें तो इस मानवता के कार्य में मेरा साथ दे सकते है, अपना योगदान देने के लिए आप मुझसे यहाँ इनबॉक्स में या फिर मोबाइल नंबर (9911257824 ) पर वाट्सअप कर सकते है। आप कम से कम कितनी भी राशि का योगदान दे सकते है। इस मानवता के कार्य में राशि की कोई मांग नहीं है जी।

आपसे मांग नहीं रहा बस पूछ रहा हूँ की आपका मन हो तो साथ आ सकते है।

खुशियाँ बोएंगे तो खुशियाँ उगेंगी

“कदे वि लोड नहीं पैंदी मैनू दर दर तो मांगने दी
मैं साहिब दी मांगती हां, मेरे पल्ले भरे रेहंदे !!”

मानव होना सार्थक करें, आओ मिलकर प्यार सदभाव बांटे।

मानव – इंसानियत ही पूजा है

अनमोल मुस्कान सितारों की

सौभाग्य था या खूबसूरत पल
न मैं जानता था ना ही मेरा दिल
उनका मासूम स्पर्श पाकर पाक सा
गद्द गद्द मन और चेहरा गया था खिल
कुछ तोहफे क्या उन्हें दिए
अनमोल मुस्कान सितारों की गई थी मिल !!

एक स्कूल में जाना हुआ था
नन्हे बच्चों से सजा मंदिर वो था
कुछ का भूरा तो रंग किसी का गेहुंआ था
शांत बैठे तो कोई मस्त-कलंदर था
जाते ऐसा लगा जैसे
चमकते सितारों का झुण्ड है झिलमिल
कुछ तोहफे क्या उन्हें दिए
अनमोल मुस्कान सितारों की गई थी मिल !!

देख हमे वो बच्चे मुस्कुरा रहे थे
कुछ झांकते तो कुछ शरमा रहे थे
मुख्य अध्यापिका के प्रवेश होते ही
नन्हे फूल अनुशासित हो दिखा रहे थे
उनके लिए नई कापियां आज आई है
यह बात उन्हें मास्टर जी समझा रहे थे
बस सुनते ही बच्चों की आँखे सुन्दर
हमारे पास रखे थैलों की तरफ गई निकल
कुछ तोहफे क्या उन्हें दिए
अनमोल मुस्कान सितारों की गई थी मिल !!

देख उन्हें मैं भावुक होता जा रहा था
मेरा सारा मन उन्ही में समा रहा था
किसी की फ़टी शर्ट थी तो कोई लटकती पेंट में था
रोना तब आ गया जब देखा पैरो में फसी टूटी चप्पल
कुछ तोहफे क्या उन्हें दिए
अनमोल मुस्कान सितारों की गई थी मिल !!

आँखों को समझा कर ध्यान उन फूलों पर दिया
जो कुछ भी ले गए थे उसे मेज़ पे सजा था लिया
नन्हे नन्हे कदमो से वो पास आते जो गए
ख़ुशी से उछलने लगा मेरा जिया
चंद लकीरो वाले हाथो से थामने लगे थे
कापियां, रंग शार्पनर रबर और पेंसिल
कुछ तोहफे क्या उन्हें दिए
अनमोल मुस्कान सितारों की गई थी मिल !!

लेते ही तोहफे वो खुश हो गए
कई बार शुक्रिया करने लगे
उन्हें लगा जैसे हम कुछ देने है आये
अनमोल पल यादगार दिन बनाया है
नहीं समझते ना ही वो थे जानते
खिलखिलाहट मासूम शक्लो की में हम भी गए घुलमिल
कुछ तोहफे क्या उन्हें दिए
अनमोल मुस्कान सितारों की गई थी मिल !!

क्या इतनी औकात मेरी है,जो कुछ भी उनको दे औउ
बस दिल की तमंना होती थी ,की एक एक को गले से लगाऊ
उनके चेहरों को ही पुचकारकर ,रहा अपने मन को समझाऊ
एक दुआ रूह से आती है ,वो जीते रहे वो जागते रहे
कामयाबियों को पाते रहे
और गरीबी उनमे से जाए निकल
कुछ तोहफे क्या उन्हें दिए
अनमोल मुस्कान सितारों की गई थी मिल !!

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Sewa Kaaj

Bade bade daan huye, bade bade mahaan huye
rajao mein se raja jo, ishwar jaisa maharaj na koi
Bade bade naam huye, bade bade kaam huye
kaamo mein se kaam jo, parhit jaisa mukaam na koi !!

Sab kuch paya, piya aur khaya, insanaiyat ka dharam na nibhaya
bss leta rha, niglta rha, kuch diya to uncha uncha naam likhwaya
kuch yantr de yaa pathar lgwade, kala kar pushto ko ghadwaya
diye hath, haath ko naa pta ho, iss jaisa daan na koi..
kaamo mein se kaam jo, parhit jaisa mukaam na koi !!

Maanas naam jaat rkhwake, aur khud ko khuda kehlwake
bhukha drr se mod de aur kush hota sbji-puri btwaake
swa rupiya niswaarth na nikle, shaan btore swaamani krwake
dya bhaav se bin swarth ke sewa jaha, aisa pooja asthaan na koi..
kaamo mein se kaam jo, parhit jaisa mukaam na koi !!

Satsang jaaye, Guru bnaaye, shabad sunaye, vachan dohraaye
sewa ke naam utakar paathar chaar, bdle mein managa sb vyapar
mukh se boli, ghani bholi, mahantaa ka raha dhong rachaye
garib dekh,bin soche kaar kre, uss jaisaa insaan na koi..
kaamo mein se kaam jo, parhit jaisa mukaam na koi !!

Sewa sewa geet gata, par hatho se na sewa kamaata
jo hai kamata, uska khub hi shor machata, zor zor machata
na geeta aayi, na kuran paya, nigalke kambhakat dikaar bhi na khata
shishyaa asal sujh-bhujh kmaale, uss jaisa huya mahaan na koi
kaamo mein se kaam jo, parhit jaisa mukaam na koi !!

Kamaya bahut hai, gwaya bhi bahut hai, moj pe bhi udyaa bahut hai
ab vichaar kar, guru ki btaayi kaar kar, jamaa ho kamayi aisa vyaapar kar
tyaag laalach, kuntha mann ki, juthe maaan mein nahaya bahut hai
Gurmanush jaan sbhi, kaam jo aye kabhi, parhit samaan kaam na koi..
kaamo mein se kaam jo, parhit jaisa mukaam na koi !!

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