बेअंत बेअंता बाप भगवाना , तुध लहे सुध हम गरीबन जन की
एक प्यास मन में गोविन्द की, चाह राखि मह में नाम धन की !!
वास करो ृदय संग किरपा धार गोसाईं ,
छूटे जंजाल मन के, प्रीत तुझपे लगाई,
रंग ना उतरे श्याम का, फिर श्यामा मैं कहलाई,
तीसर होयो उजाला, घट बजे रूहानी घंटन की,
एक प्यास मन में गोविन्द की, चाह राखि मह में नाम धन की !!
कह सुनाऊ कैसे, धुंध हटाए रोशन भीतर हुआ,
तू दीसे तू सुंनिये तू सब ठोर, जब मैं मुआ ,
ठहरा दिओ जिया मोरा, घुमत घुमत बन चूहा,
मन मारिया कर धार तेज़ नाम तेगन की,
एक प्यास मन में गोविन्द की, चाह राखि मह में नाम धन की !!
अँखियाँ भई मोतियाबिंद, बाहर दरसन की लेह आस,
दसुं दिसा फिरे मारा, न सुख न रूह ने पायो छणिक रास,
मुग्ध भये भटकुं सब थाई, अंदर आनन्द रमिया मोहे पास,
साफ कपड़ लिए ओढ़ सुन्दर, बन भग्त पर स्वछ ना सूरत मन की,
एक प्यास मन में गोविन्द की, चाह राखि मह में नाम धन की !!
ऐकस रामा, ऐकस नामा, ऐकस ईसा की जाता,
नील सफ़ेद भगवा धार मोह माहे भरमाता,
रबाबा ताल ढोल बजा, इष्ट आपण का जाहिर किया मनाता,
ना ध्याया, ना पाया, ना सोझी पाहे गई दिल विराजे भगवन की,
एक प्यास मन में गोविन्द की, चाह राखि मह में नाम धन की !!
काहे दरस होये प्रभु तेरे, बंदा बंद कितना लगा लिया,
वासना, क्रोध, मोह, लोभ, भर तन अहंकार का किया,
ना सेवा, ना कमाई गुर की, डूबा जीणा जेह में मिलन की बरिया,
पट्ट नाही खोले संतवाणी को, कित सुने हरी धुन बजी झन झन की,
एक प्यास मन में गोविन्द की, चाह राखि मह में नाम धन की !!
गोविन्द मिलन की पौढ़ी, गुरु आँगन सुं चढ़ पावे,
नाम लेह संतन की सुध का, अखियन बीच ध्यान बिठावे,
किरपा की बरखा बरस रही तहाँ, गुरु गोविन्द को दीदार दिखावे,
उड़ उडारी तन भीतर से, पहुंचे रूह निजधाम नगर माधवन की,
एक प्यास मन में गोविन्द की, चाह राखि मह में नाम धन की !!